Sunday, January 18, 2009

छूट गयीं हूँ मैं वहीँ जहाँ मेरा सब कुछ छूटा था,

क्या हुआ ऐसा जो मुझसे मेरा रब रूठा था....

पलकों पे सजा रही थी कितने सपने,

आँख खुली तो सब रेत का घरोंदा था......

2 comments:

  1. पलकों पे सजा रही थी कितने सपने,

    आँख खुली तो सब रेत का घरोंदा था......
    bhut khub behtreen liene hai
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

    ReplyDelete