कितना बांधा मन को ,
फिर भी न जाने क्या छूट रहा ...
ऐसा लगता है मन के भीतर ,
कुछ तो है जो टूट रहा है....
बंधन है शायद कोई जो सालों पहले बांधा होगा,
पर जबसे तुमसे जुड़ गया यह नाता है ,
उस बंधन का हर एक धागा जैसे ,
धीरे धीरे टूट रहा है....
खोल यह सारे बंधन मैं,
अब उन्मुक्त उड़ना चाहती हूँ,
एक बार संग तुम्हारे,
इस आकाश को छूना चाहती हूँ.....
कैसी चाहत जगी है मन में,
कैसे सपनो का सृजन हुआ है,
ऐसा लगता है मानू,
मेरा नया जनम हुआ है.......
Dated:27th may,2001
ReplyDeletekya baat hai !
ReplyDeletejiyo jiyo!!!!!!