सो गए क्यों पहन कर कफ़न ओ गाँधी,
जागो आँखें खोल कर देखो भारत की बर्बादी,
कैसे जलेगी यहाँ मशाल अहिंसा की,
जब हर तरफ हिन्सा की आग है जल रही.....
कहीं ब्रिष्टाचार तो कहीं बमबारी ने घेरा है,
कैसे कहोगे अब गर्व से की यह भारत वर्ष मेरा है,
कभी ताज तो कभी अक्षरधाम घिर जाता है,
बम के धमाके से हर वर्ष यह देश तेरा छलनी हो जाता है,
और तेरी अहिंसा का पाठ फ़िर किताबों में सिमट के रह जाता है....
तेरे अहिंसा के पालने में देख हिंसा है पल रही,
कभी देहली का बाजार तो कभी ताज की ईमारत है जल रही,
मजहब के लिए तेरे ही देशवासी खून अपनों का बहाते हैं,
सबसे पहले इंसान हैं यह कैसे भूल जाते हैं.....
दुनिया तुझे शान्ति का मसीहा बुलाती है,
और तेरे ही इस देश में अपने मासूम बेटों के लहो -लुहान शव पे,
न जाने कितनी लाचार माँ आँसू बहाती है....
अपनी माँ के आँचल को खून से लथपथ देख,
कैसे तुम चैन की नींद सोते हो,
या तुम भी हम सब की तरह,
तन्हाई में सिसकी भर अपने इस भारत के लिए अशर बहाते हो....
Dated:1st Dec,2009
ReplyDeleteनिधि जी बहुत ही वेहतरीन कविता जरा इस पर भी गौर करे
ReplyDeleteआज देश को फिर वसन चाहिए \
खून से सना ही सही , तन चाहिए \
जाति धर्म की आग लग रही ,
कोने कोने में,,
देश वैर वैमनस्यता जलाये जारही ।
इस आग के समन का कुछ जतन चाहिए\
आज देश को फिर वसन चाहिए \
खून से सना ही सही , तन चाहिए \
उड़ रही है खून मॉस की आंधिया\
अब और भी निर्वस्त्र हो रही है वेटियाँ \
भूंख और प्रतारणा लिए किसान जी रहा है \
बूंद की आश में बूंद बूंद पी रहा है \
इस मौत की घडी में कुछ हसन चाहिए \
आज देश को फिर वसन चाहिए \
खून से सना ही सही , तन चाहिए \
विकाश और विलासता की लम्बी दौड़ में \
प्रगति और प्रगति की तीखी होड़ में \
जीवन की सहज गति को हमने भुला दिया \
रास्ट्र की प्रगति को हमने भुला दिया \
आज और नहीं इसपे कुछ मनन चाहिए \
आज देश को फिर वसन चाहिए \
खून से सना ही सही , तन चाहिए \
पुकार उठ रही हिम की कन्द्राओ से \
कुछ लव्ज छन के आ रहे प्रसान्त की धाराओ से \
खून से सनी माटियाँ पुकारती है \
देश हित में लड़ी घटिया पुकारती है \
फिर से नेता सुभाष ही करे या गाँधी ही करे \
मुझको तो इन रास्ट्र द्रोही ताकतों का दमन चाहिए \
आज देश को फिर वसन चाहिए \
खून से सना ही सही , तन चाहिए \