तलाश रहीं  हूँ मैं,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे...
जीवन के चिर सत्य इश्वर से मेरा भी परिचय करा दे,
पता नही क्यों पत्थर में राम को खोज नही पाती,
 में दीप जला मन का अँधेरा मिटा नहीं पाती....
मन्दिर में दीप जला ढोल बजा मुझे इश्वर नही मिलता,
पुष्प चढा  कर नाद बजा कर मेरा अन्तर्मन् नही खिलता ,
खोज रही हूँ मैं,
ऐसा  दीप जो अपने उजियारे से मेरा आध्यात्म जगा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकनद बना दे..... ...
तलाश रहीं  हूँ मैं ऐसा गुरु ,
जो मेरा ह्रदय झाक्जोर मेरा ख़ुद से,
और मेरे अन्तेर्मन में बस रहे मेरे राम  से परिचय करा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे.......
 
Dated :13th June,1997
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