Sunday, January 18, 2009

छूट गयीं हूँ मैं वहीँ जहाँ मेरा सब कुछ छूटा था,

क्या हुआ ऐसा जो मुझसे मेरा रब रूठा था....

पलकों पे सजा रही थी कितने सपने,

आँख खुली तो सब रेत का घरोंदा था......

एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे

तलाश रहीं हूँ मैं,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे...
जीवन के चिर सत्य इश्वर से मेरा भी परिचय करा दे,
पता नही क्यों पत्थर में राम को खोज नही पाती,
में दीप जला मन का अँधेरा मिटा नहीं पाती....

मन्दिर में दीप जला ढोल बजा मुझे इश्वर नही मिलता,
पुष्प चढा कर नाद बजा कर मेरा अन्तर्मन् नही खिलता ,
खोज रही हूँ मैं,
ऐसा दीप जो अपने उजियारे से मेरा आध्यात्म जगा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकनद बना दे..... ...

तलाश रहीं हूँ मैं ऐसा गुरु ,
जो मेरा ह्रदय झाक्जोर मेरा ख़ुद से,
और मेरे अन्तेर्मन में बस रहे मेरे राम से परिचय करा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे.......

Thursday, January 15, 2009

ओ गाँधी

सो गए क्यों पहन कर कफ़न ओ गाँधी,
जागो आँखें खोल कर देखो भारत की बर्बादी,
कैसे जलेगी यहाँ मशाल अहिंसा की,
जब हर तरफ हिन्सा की आग है जल रही.....

कहीं ब्रिष्टाचार तो कहीं बमबारी ने घेरा है,
कैसे कहोगे अब गर्व से की यह भारत वर्ष मेरा है,
कभी ताज तो कभी अक्षरधाम घिर जाता है,
बम के धमाके से हर वर्ष यह देश तेरा छलनी हो जाता है,
और तेरी अहिंसा का पाठ फ़िर किताबों में सिमट के रह जाता है....

तेरे अहिंसा के पालने में देख हिंसा है पल रही,
कभी देहली का बाजार तो कभी ताज की ईमारत है जल रही,
मजहब के लिए तेरे ही देशवासी खून अपनों का बहाते हैं,
सबसे पहले इंसान हैं यह कैसे भूल जाते हैं.....

दुनिया तुझे शान्ति का मसीहा बुलाती है,
और तेरे ही इस देश में अपने मासूम बेटों के लहो -लुहान शव पे,
न जाने कितनी लाचार माँ आँसू बहाती है....

अपनी माँ के आँचल को खून से लथपथ देख,
कैसे तुम चैन की नींद सोते हो,
या तुम भी हम सब की तरह,
तन्हाई में सिसकी भर अपने इस भारत के लिए अशर बहाते हो....






नया जनम

कितना बांधा मन को ,
फिर भी न जाने क्या छूट रहा ...
ऐसा लगता है मन के भीतर ,
कुछ तो है जो टूट रहा है....

बंधन है शायद कोई जो सालों पहले बांधा होगा,
पर जबसे तुमसे जुड़ गया यह नाता है ,
उस बंधन का हर एक धागा जैसे ,
धीरे धीरे टूट रहा है....

खोल यह सारे बंधन मैं,
अब उन्मुक्त उड़ना चाहती हूँ,
एक बार संग तुम्हारे,
इस आकाश को छूना चाहती हूँ.....

कैसी चाहत जगी है मन में,
कैसे सपनो का सृजन हुआ है,
ऐसा लगता है मानू,
मेरा नया जनम हुआ है.......

Tuesday, January 13, 2009

माँ

माँ है तू मेरी यह एहसास सदा था,
अच्छा बुरा जैसा भी वक्तआया तेरा साथ सदा था,
पर माँ होना क्या होता है यह अब तक न जान पाई थी.....

तेरे आँचल के साए का एहसास और गहराया है,
जब से मैने इस नन्हे फूल के लिए अपना दामन फैलाया है,
हर बार जब प्यार से इसको को सहलाती हूँ,
मिला था यह प्यार मुझे भी यह सोच कर सिहर आती हूँ......

जब इस के खोने का एहसास मुझे डरता है,
मेरे देर से आने पर जो बहते थे तेरे उन आंसूं को मोल समझ आता है ,
मेरी आँख का तारा जब बेफिक्र हो मेरी गोद में सोता है,
हर उस पल मुझे तेरी ममता का एहसास और गहरा होता ....

लौटा तो नही सकती वो सब जो तुने मुझे दिया है,
लेकिन ऋण यह तेरे स्नेह का अपने बेटे पर उतार रही हूँ,
वोह प्यार जो पाया है तुझ से इस पर लुटा रही हूँ....

जानती हूँ तेरा मेरा रिश्ता शब्दों का मुहताज नहीं है,
मगर आज कहना चाहती हूँ जो अब तक कहा नहीं है,
'माँ' हर बच्चे को अपनी माँ प्यारी होती है,
मगर कम होते हैं मुझ जैसे किस्मत वाले जिनकी ,
इतनी प्यारी माँ होती है......