Wednesday, August 12, 2009

एक प्रवासी माँ


तिरंगा लहराना उसे सिखाया,
राष्ट्र-गान भी स्मरण कराया,
वतन से इतनी दूर एक प्रयास किया है ,
अपने नन्हे दीपक को देश दीपक बनाने का,
भारत से दूर उसे भारत-वासी रख पाने का...

अपने देश को वो नानी,दादी के घर से पहचानता है,
मात्र भूमि को मेरा लाल 'होलीडे डेस्टिनेशन' मानता है,
कैसे और कब उसमें देश भक्ति का भाव जागेगा,
कब उसे वो 'मेरा भारत' कह कर पुकारेगा,

क्या कभी छू पाएगी उसे देश की हवा,
जैसे मुझे छूती है...
क्या जान पायेगा वो कभी ,
अपने देश की मिट्टी की सोंधी सी खुशबू,
कैसी होती है....

माँ हूँ मैं उसकी, सब सिखा सकती हूँ,
आजादी के किस्से,
क्रांति की कहानियाँ सुना सकती हूँ,
मगर उनके बलिदान से ,
जो भीग जाती हैं मेरी पलकें,
क्या वो एहसास मैं ,
अपने बेटे को दिला सकती हूँ...

जानती हूँ अत्याधिक अपेक्षा कर रही हूँ,
पांच साल के बालक में ,
देश भक्ति तलाश रही हूँ,

देश के लिए और कुछ न कर सकूं शायद,
इसलिए अपने लाल को
एक देश भक्त बनाने का,
सार्थक प्रयास कर रही हूँ ....

Tuesday, August 11, 2009

माँ की व्यथा

लौटी हूँ एक माँ को सांत्वना दे कर,
अनुभव की एक बार फ़िर,
अपने ही अंश के आकार न बन पाने की व्यथा....

सूखा हुआ ज़ख्म फ़िर बहने लगा ,
खो गया जो मेरा बीज बिन पनपे ,
उसकी वेदना से ह्रदय फ़िर पीड़ित हुआ ....

वक्त ने रखे हैं मरहम ज़ख्मों पर,
मगर यह चोट नही भर पायी,
मैं उसकी भी माँ होती यह सोच कई बार,
हूक सी सीने में उमड़ आई ...

है बहुत सुंदर फूल मेरी बगिया में,
मगर दिल का वो कोना अब भी खाली है,
माँ बनने का प्रथम एहसास दिया था जिसने,
उसके न होने की पीडा अब भी बाकी है.....

उसे स्पर्श नही किया,
मगर वो अंश था मेरा ,
मैं समेट पाती उस एहसास को,
उससे पहले ही वो चल दिया ...

नियति के कठोर खेल ने,
एक माँ का आँचल हमेशा के लिए ,
छलनी कर दिया .....

Monday, June 22, 2009

बिरह का एहसास

जागा है फिर वही बिरह का एहसास,
आज फिर वही तन्हाई है,
पलकें फिर मूंदी मैनें,
आज फिर नींद नहीं आई है.....

फिर वही खिड़की है ,
वही चाँद और फिर वही खुली आँखें हैं,
तेरे पास पंख लगा उड़ आने को,
फिर मचलती मेरी वही चाहतें हैं.....

तन्हाई ने फिर विह्वल किया,
फिर वेदना शब्दों में ढल गई,
तेरी याद में ,तेरी तन्हाई में ,
फिर एक और नगम बन गई...

बदला है इतने बरस में कुछ तो बस इतना ही,
पहले प्रेमिका थी अब अर्धांगिनी हूँ,
पहले कशिश थी उसकी जो मेरा नहीं हुआ था,
अब तड़प है उसकी जिसे पा चुकी हूँ.....

राधा सी मैं हुई बावरी

मन बन गया वृन्दावन ,
आंखें गोकुल की गालीयाँ,
राधा सी मैं हुई बावरी,
जब से गया मेरा कन्हीया,

कान्हा कान्हा पुँकार रही हूँ,
इन गोकुल की गलीयों में,
केशव बहुत सताया मुझको,
तेरी इन चंचल अंखीयों ने,

सब से है तू करे ठिठोली,
मुझसे ही न बोले है,
इतना तो बेपीर नहीं ,
फिर पीर ह्रदय की क्यों न जाने है,

विह्वल तेरे बिरह में कान्हा,
कुछ ऐसी तेरी राधे है,
शूलों से चुभते उसे ,
सखियों के उल्हानें हैं,
और तेरी देरी के भी तो ,
सूझे न इसे कोई बहाने हैं,

अब और देर न करना ,
सुन लो मेरे कान्हा तुम,
वरना हो जायेगी अब,
तेरी यह राधा गुम.

Sunday, May 31, 2009

सर्वस्व तुझ पे अर्पण किया


पुष्पों से श्रृंगार किया था ,
दूध से नहलाया था,
अपनी आस्था के दीपक से प्रतिदिन,
तेरा शिवालय सजाया था....

बाल मन की अंधभक्ति से,
युवा मन की आराधना तक,
सहज पलों के खुश लम्हों से ,
सिसकी भरी रातों तक,
कण कण में ढूँढा,कण कण पे शीश झुकाया..

मगर जीवन की आपा थापी ने मुझे झुलसा दिया,
तेरी आस्था के पुष्पों को कुछ ऐसा कुम्हला दिया ,
अब अश्कों से नहलाया है तुझको ,
व्यथाओं से श्रृंगार किया है ,
सिसकीयों का नाद भर,
दर्द का दीप प्रज्वलित किया ...

ग्लानी नहीं है मुझे ,
नही मैने कोई अपराध किया ,
जो भी मिला है तुझसे,
सर्वस्व तुझ पे अर्पण कर दिया ।

Saturday, April 18, 2009

एक पृथक मैं भी हूँ...

मृत पेड़ पर हरियाती हुई बेल हूँ मैं,
अंधेरे में टिमटिमाती हुई लौ भी हूँ,
थक कर चूर हुए उन हजारों मुसाफिरों में,
एक पृथक मैं भी हूँ....

चल रही हूँ मैं इसलिए नहीं की मुझ मैं सहास है,
लड़ रही हूँ मगर यह उत्साह की लड़ाई नहीं है,
निरंतर चलायमान है मेरा संघर्ष क्योंकि,
पलट कर लौटने के लिए कोई राह ही नहीं है.....

प्रतिभा की कमी किसी मैं नहीं होती ,
ना उसे कोई मिटा सकता है,
मगर वक्त के कठिन थपेडे इन्हे दबा देते हैं,
कुछ कर गुजरने का जस्बा ही मिटा देते हैं...

चींटी की तरह मैं भी बार बार गिरती हूँ पहाड़ से,
फिर चल पड़ती हूँ उसी चोटी को छूने,
क्यों कर रही हूँ ऐसा यह जानती नहीं,
शायद मंजिल तक जाने वाली कोई सरल राह ही नहीं,
और मंजिल भी क्या है यह आभास ही नहीं .....

सब कुछ वैसा ही है,
वही संघर्ष वही लड़ाई है,
मगर आपकी प्रितिभावान निधि,
वहीँ कहीं छूट आई है.....

दुनिया के लिए मिसाल बनूँ,
यह चाह ही कहाँ है,
जब किश्त किश्त में मिल रही है जिंदगी,
तो उस में सपनो की जगह ही कहाँ हैं......

Wednesday, February 18, 2009

सही निर्णय

भटकती राहों पर चल रही थी मैं,
धुंधली दिखने लगीं थी तस्वीरें ,
मझधार तक पहुंची तो लगा ,
खो गया है किनारा छूट रही हैं मंजिलें ....

टटोला अपने मन को और समेटा,
हुआ जो अब तक वो और कब तक होगा,
सहमा सा है मन मगर में जानती हूँ,
मेरा यह निर्णय सही ही होगा.....

उठी कई निगाहें मेरे निर्णय पे,
बहुत से सवालों ने सताया,
अपनों के ले लिए लिया है यह निर्णय,
मेरे मन ने मुझे समझाया.........

राह कठिन है मंजिल भी अनजानी,
निकल पड़ी हूँ मैं सहास की बांह थामी,
कभी लगा तनहा हूँ मैं ,
कैसे चलूंगी इतनी दूर,
पलट कर देखा तो मेरे अपने ,
सब मेरे साथ थे,
छोड़ गए जो मझधार में ,
वो कब मेरे हमसफ़र, मेरे दोस्त थे...

Tuesday, February 17, 2009

तन्हाई अपनी मेरी यादों से सजा रहा है...

खामोश है सारा जहाँ,

मगर हवाओं में एक संगीत है,

थिरक उठे हैं मेरे पाँव जिन पर,

किसने छेड़ा यह मधुर गीत है...

सुन रही है जो मेरी खामोशी,

किस की यह पद्चाप है,

ऐसा लगता है दूर से,

कोई दे रहा आवाज़ है ....

क्यों बार बार होता है आभास,

जैसे कोई मुझे बुला रहा है,

तनहाइ अपनी शायद ,

मेरी यादों से सजा रहा है.......

Sunday, January 18, 2009

छूट गयीं हूँ मैं वहीँ जहाँ मेरा सब कुछ छूटा था,

क्या हुआ ऐसा जो मुझसे मेरा रब रूठा था....

पलकों पे सजा रही थी कितने सपने,

आँख खुली तो सब रेत का घरोंदा था......

एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे

तलाश रहीं हूँ मैं,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे...
जीवन के चिर सत्य इश्वर से मेरा भी परिचय करा दे,
पता नही क्यों पत्थर में राम को खोज नही पाती,
में दीप जला मन का अँधेरा मिटा नहीं पाती....

मन्दिर में दीप जला ढोल बजा मुझे इश्वर नही मिलता,
पुष्प चढा कर नाद बजा कर मेरा अन्तर्मन् नही खिलता ,
खोज रही हूँ मैं,
ऐसा दीप जो अपने उजियारे से मेरा आध्यात्म जगा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकनद बना दे..... ...

तलाश रहीं हूँ मैं ऐसा गुरु ,
जो मेरा ह्रदय झाक्जोर मेरा ख़ुद से,
और मेरे अन्तेर्मन में बस रहे मेरे राम से परिचय करा दे,
एक ऐसा परमहंस जो मुझे विवेकानंद बना दे.......

Thursday, January 15, 2009

ओ गाँधी

सो गए क्यों पहन कर कफ़न ओ गाँधी,
जागो आँखें खोल कर देखो भारत की बर्बादी,
कैसे जलेगी यहाँ मशाल अहिंसा की,
जब हर तरफ हिन्सा की आग है जल रही.....

कहीं ब्रिष्टाचार तो कहीं बमबारी ने घेरा है,
कैसे कहोगे अब गर्व से की यह भारत वर्ष मेरा है,
कभी ताज तो कभी अक्षरधाम घिर जाता है,
बम के धमाके से हर वर्ष यह देश तेरा छलनी हो जाता है,
और तेरी अहिंसा का पाठ फ़िर किताबों में सिमट के रह जाता है....

तेरे अहिंसा के पालने में देख हिंसा है पल रही,
कभी देहली का बाजार तो कभी ताज की ईमारत है जल रही,
मजहब के लिए तेरे ही देशवासी खून अपनों का बहाते हैं,
सबसे पहले इंसान हैं यह कैसे भूल जाते हैं.....

दुनिया तुझे शान्ति का मसीहा बुलाती है,
और तेरे ही इस देश में अपने मासूम बेटों के लहो -लुहान शव पे,
न जाने कितनी लाचार माँ आँसू बहाती है....

अपनी माँ के आँचल को खून से लथपथ देख,
कैसे तुम चैन की नींद सोते हो,
या तुम भी हम सब की तरह,
तन्हाई में सिसकी भर अपने इस भारत के लिए अशर बहाते हो....






नया जनम

कितना बांधा मन को ,
फिर भी न जाने क्या छूट रहा ...
ऐसा लगता है मन के भीतर ,
कुछ तो है जो टूट रहा है....

बंधन है शायद कोई जो सालों पहले बांधा होगा,
पर जबसे तुमसे जुड़ गया यह नाता है ,
उस बंधन का हर एक धागा जैसे ,
धीरे धीरे टूट रहा है....

खोल यह सारे बंधन मैं,
अब उन्मुक्त उड़ना चाहती हूँ,
एक बार संग तुम्हारे,
इस आकाश को छूना चाहती हूँ.....

कैसी चाहत जगी है मन में,
कैसे सपनो का सृजन हुआ है,
ऐसा लगता है मानू,
मेरा नया जनम हुआ है.......

Tuesday, January 13, 2009

माँ

माँ है तू मेरी यह एहसास सदा था,
अच्छा बुरा जैसा भी वक्तआया तेरा साथ सदा था,
पर माँ होना क्या होता है यह अब तक न जान पाई थी.....

तेरे आँचल के साए का एहसास और गहराया है,
जब से मैने इस नन्हे फूल के लिए अपना दामन फैलाया है,
हर बार जब प्यार से इसको को सहलाती हूँ,
मिला था यह प्यार मुझे भी यह सोच कर सिहर आती हूँ......

जब इस के खोने का एहसास मुझे डरता है,
मेरे देर से आने पर जो बहते थे तेरे उन आंसूं को मोल समझ आता है ,
मेरी आँख का तारा जब बेफिक्र हो मेरी गोद में सोता है,
हर उस पल मुझे तेरी ममता का एहसास और गहरा होता ....

लौटा तो नही सकती वो सब जो तुने मुझे दिया है,
लेकिन ऋण यह तेरे स्नेह का अपने बेटे पर उतार रही हूँ,
वोह प्यार जो पाया है तुझ से इस पर लुटा रही हूँ....

जानती हूँ तेरा मेरा रिश्ता शब्दों का मुहताज नहीं है,
मगर आज कहना चाहती हूँ जो अब तक कहा नहीं है,
'माँ' हर बच्चे को अपनी माँ प्यारी होती है,
मगर कम होते हैं मुझ जैसे किस्मत वाले जिनकी ,
इतनी प्यारी माँ होती है......