Sunday, May 31, 2009

सर्वस्व तुझ पे अर्पण किया


पुष्पों से श्रृंगार किया था ,
दूध से नहलाया था,
अपनी आस्था के दीपक से प्रतिदिन,
तेरा शिवालय सजाया था....

बाल मन की अंधभक्ति से,
युवा मन की आराधना तक,
सहज पलों के खुश लम्हों से ,
सिसकी भरी रातों तक,
कण कण में ढूँढा,कण कण पे शीश झुकाया..

मगर जीवन की आपा थापी ने मुझे झुलसा दिया,
तेरी आस्था के पुष्पों को कुछ ऐसा कुम्हला दिया ,
अब अश्कों से नहलाया है तुझको ,
व्यथाओं से श्रृंगार किया है ,
सिसकीयों का नाद भर,
दर्द का दीप प्रज्वलित किया ...

ग्लानी नहीं है मुझे ,
नही मैने कोई अपराध किया ,
जो भी मिला है तुझसे,
सर्वस्व तुझ पे अर्पण कर दिया ।