Thursday, December 16, 2010

अधूरे एहसास जिन्हें शब्दों की दुनिया नहीं मिली

बहुत दिन से एक कशमकश  सी है,
कभी शब्द नहीं मिलते,
कभी भावनाएँ ने खो दी जमीन है,
और कभी जब दोनों में बैठा ताल मेल,
तो कोई कविता नहीं पनपी है...

कुछ एहसास जो अनकहे से होठों में दबे हैं,
और कुछ निराकार ह्रदय में बहे,
कुछ  एहसास जो सोच की सीमा से परे हैं,
और कुछ जो मन के बांधे बंधन में बंध गए,
इन सभी अधूरे एहसासों को,
 शब्दों की दुनिया नहीं मिली है....

परत दर परत समेटती जा रही हूँ,
यह  आधे अधूरे से कुछ  एहसास,
सोचती हूँ,
कहाँ  सूखी मिट्टी से मूर्त कोई बनी है,
चाहा भी कुछ बूँद पलकों से ले उधार,
इन एहसासों को नम कर एक आकार रच दूं,
मगर पलकों  में अब नमी भी  नहीं मिली है.....