Saturday, January 8, 2011

2010

जिंदगी की दीवार पे एक और साल का कैलेंडर लटक गया ,
कुछ पन्ने ख़ुशी के थे कुछ पे ग़मों का रंग छिटक गया,
कुछ यादें हमने नयी बनायीं ,
कुछ पुरानी अतीत से चुराईं,
लम्हे कुछ अपने अपनों से बांटे और कुछ तन्हाई में काटे ,
कभी अनुभवी पतंगबाज़ की पतंग सा उड़ा मन,
कभी कटी पतंग सा भटक गया ,
और जिंदगी की दीवार पे एक और साल का कैलेंडर लटक गया ,

कुछ अतीत के दरवाज़े हमने बंद किये,
कुछ दिल की खिडकियों के पट नए खोले ,
दर्द पुराने कुछ जिंदगी को नए सबक दे गए ,
खुशियों के पल कुछ जिंदगी में मिठास से घुले
लम्हे कुछ हमसे बने और कुछ लम्हों ने हमे बदल दिया ,

कभी जिंदगी ने हमारा हाथ थामा,
तो कभी हमारी राह का रुख बदल दिया ,
और इस उधेड़बुन में जिंदगी का एक और पन्ना पलट गया ......

3 comments:

  1. सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  2. एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  3. प्रशंसनीय रचना - हार्दिक शुभकामनाएं
    विशेष:
    "कभी अनुभवी पतंगबाज़ की पतंग सा उड़ा मन,
    कभी कटी पतंग सा भटक गया"

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