बहुत दिन से एक कशमकश सी है,
कभी शब्द नहीं मिलते,
कभी भावनाएँ ने खो दी जमीन है,
और कभी जब दोनों में बैठा ताल मेल,
तो कोई कविता नहीं पनपी है...
कुछ एहसास जो अनकहे से होठों में दबे हैं,
और कुछ निराकार ह्रदय में बहे,
कुछ एहसास जो सोच की सीमा से परे हैं,
और कुछ जो मन के बांधे बंधन में बंध गए,
इन सभी अधूरे एहसासों को,
शब्दों की दुनिया नहीं मिली है....
परत दर परत समेटती जा रही हूँ,
यह आधे अधूरे से कुछ एहसास,
सोचती हूँ,
कहाँ सूखी मिट्टी से मूर्त कोई बनी है,
चाहा भी कुछ बूँद पलकों से ले उधार,
इन एहसासों को नम कर एक आकार रच दूं,
मगर पलकों में अब नमी भी नहीं मिली है.....
किसकी बात करें-आपकी प्रस्तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्ददायक हैं।
ReplyDeleteमगर पलकों में अब नमी भी नहीं मिली है.....
ReplyDeleteआपके सीधे सरल शब्द ... और भावो की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है ....
यहाँ भी आये ...
http://unbeatableajay.blogspot.com/
निधि जी
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर मन हर्षित हुआ ....ब्लॉग शीर्षक सहज ही आकर्षित करता है ...आपकी कविता का कोई जबाब नहीं , प्रत्येक पंक्ति दिल को छूने वाली .....बहुत - बहुत आभार .............नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
"कहाँ सूखी मिट्टी से मूर्त कोई बनी है,
ReplyDeleteचाहा भी कुछ बूँद पलकों से ले उधार,
इन एहसासों को नम कर एक आकार रच दूं,
मगर पलकों में अब नमी भी नहीं मिली है....."
अति सुंदर