Friday, May 7, 2010

मेरा मैं ही खटक गया..

कोई गुजरा हुआ लम्हा,
गुजरने से पहले जिंदगी से अटक गया,
दुःख का एक कतरा,
 जो सदियों  से आँखों में कैद था,
वो  आंसों बन  आखों से भटक गया,
गैरों को भी जो अपनों सा अपनाती थी,
उसी जिंदगी को आज मेरा मैं ही खटक गया.

3 comments:

  1. मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता

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  2. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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