Thursday, April 29, 2010

जिंदगी क्या क्या लायी

खर्च कर सुख की पोटली,
जिंदगी  दुखों का सामान,
घर ले आई,

जिसकी एक चुभन  से,
बिखर जाता है मन पारे सा ,
जिंदगी वो दुःख का मेहमान ,
घर ले आई,

थका थका था तन,
अब चुका  सा रहेगा  मन,
जिंदगी  नया ये फरमान,
घर ले आई ,

अपने ही दुखों से ,
पूरा नहीं था मन आँगन,
दूसरों के दर्द भी अब यह,
उधार ले आई,

और फिर कोई भाप न ले ,
रोई  हुई आँखों के किनारे,
मेरे रिसते गम छुपाने के लिए,
यह स्याह काजल का ,
पूरा बाज़ार घर ले आई,

जब लगा असहनीय पीड़ा का चक्र तोड़,
रोक दूं सांसों   की आती जाती चुभन,
तभी जिंदगी,
 जीने के नए से बहाने ,
 दो चार घर ले आई.

8 comments:

  1. very touchy poem......luvd it very much

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर पोस्ट जिन्दगी क्या -२ ले आती है पता नहीं
    आभार..............

    ReplyDelete
  3. फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

    ReplyDelete
  4. Wonderful!!! nice writing skills..

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा लिखा है आपने

    ReplyDelete
  6. ये बहाने ही तो स्टिक का कम करते है जिंदगी वास्ते......

    ReplyDelete
  7. Thanks for all the encouraging words!Sahi kaha Anurag ji ,inhi bahane ko to hum jindagi kehte hain....

    ReplyDelete