Monday, April 26, 2010

यह कुछ एहसास....




यह कुछ एहसास 






यह कुछ एहसास 
हों जैसे कोई 
दीवार पे लटकी हुई तस्वीर।

सिर्फ तेज हवा के झोंके से
थरथराते  हों जैसे 
यह कुछ एहसास।

डगमगाते हुए,
जिंदगी की कील से लटके
मन की दीवार पर
अनगिनत निशान छोड़ जाते 
यह कुछ एहसास।


जिन एहसासों का अस्तित्व 
सिर्फ तेज़  हवा तक सीमित हैं ,
दिल की दीवार पर सुशोभित,
यह कुछ एहसास ..


मेरा एहम हैं,
या मेरी बदली सोच
मन की बाँधी गाँठ हैं 
या कुछ गहरी पहुँची चोट
 मगर हैं यह बस कुछ एहसास।


संवेदनाओं के भूकंप से
जब कभी हिलती हैं
सोच की दीवारें
वहीं  कील पर लटके 
कुछ नए निशान छोड़ जातेहैं 
यह कुछ  एहसास।



7 comments:

  1. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  2. bahut hi behatreen kavita..
    padhkar achhi lagi..
    yun hi likhti rahein....
    regards..
    http://i555.blogspot.com/
    idhar ka v rukh karein...

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  3. ---- चुटकी----

    दादा,नाना,चाचा.....
    भूल गए हम
    अंकल
    हुए मशहूर,
    रिश्ते लोग
    दिखावे के अब
    स्नेह हो गया दूर।

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  4. bahut sunder abhivyakti ..........
    tajgee ka sparsh liye........

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  5. संवेदनाओं के भूकंप से,
    जब कभी हिलती हैं ,
    सोच की दीवारें,

    waahhhhhhhhhh

    waahhhhh

    kya andaz hai jazbaat bayan karne ka aa ha

    achhee nazm

    visit at kalaam-e-chauhan.blogspot.com

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