Monday, June 22, 2009

बिरह का एहसास

जागा है फिर वही बिरह का एहसास,
आज फिर वही तन्हाई है,
पलकें फिर मूंदी मैनें,
आज फिर नींद नहीं आई है.....

फिर वही खिड़की है ,
वही चाँद और फिर वही खुली आँखें हैं,
तेरे पास पंख लगा उड़ आने को,
फिर मचलती मेरी वही चाहतें हैं.....

तन्हाई ने फिर विह्वल किया,
फिर वेदना शब्दों में ढल गई,
तेरी याद में ,तेरी तन्हाई में ,
फिर एक और नगम बन गई...

बदला है इतने बरस में कुछ तो बस इतना ही,
पहले प्रेमिका थी अब अर्धांगिनी हूँ,
पहले कशिश थी उसकी जो मेरा नहीं हुआ था,
अब तड़प है उसकी जिसे पा चुकी हूँ.....

10 comments:

  1. बदला है इतने बरस में कुछ तो बस इतना ही,
    पहले प्रेमिका थी अब अर्धांगिनी हूँ,
    पहले कशिश थी उसकी जो मेरा नहीं हुआ था,
    अब तड़प है उसकी जिसे पा चुकी हूँ.....
    bhut hi khub kitni khub surti se prem ki abhivyakti aur us ki tadap ki darsaya hai
    badhayi
    saadar
    praveen pathik

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  2. naya hai ahasaas
    ek baar fir se padhataa hoon !

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  3. बेहद खूबसूरत रचना
    बहुत ही सुन्दर भाव है..और उतनी ही गहराई भी



    कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
    लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
    इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !

    तरीका :-

    डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स


    आज की आवाज

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  4. yahaan shabd fool se mahakte hain.

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  5. बदला है इतने बरस में कुछ तो बस इतना ही,
    पहले प्रेमिका थी अब अर्धांगिनी हूँ,
    पहले कशिश थी उसकी जो मेरा नहीं हुआ था,
    अब तड़प है उसकी जिसे पा चुकी हूँ....

    lots of poetential here...thodi si polishing chahiye I think writing me,which can make u exceptional...

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  6. पलकें फिर मूंदी मैनें,
    आज फिर नींद नहीं आई है.....
    =====
    बहुत खूब लिखा है

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  7. पहले प्रेमिका थी अब अर्धांगिनी हूँ,

    वाह वाह वाह ॥

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