लौटी हूँ एक माँ को सांत्वना दे कर,
अनुभव की एक बार फ़िर,
अपने ही अंश के आकार न बन पाने की व्यथा....
सूखा हुआ ज़ख्म फ़िर बहने लगा ,
खो गया जो मेरा बीज बिन पनपे ,
उसकी वेदना से ह्रदय फ़िर पीड़ित हुआ ....
वक्त ने रखे हैं मरहम ज़ख्मों पर,
मगर यह चोट नही भर पायी,
मैं उसकी भी माँ होती यह सोच कई बार,
हूक सी सीने में उमड़ आई ...
है बहुत सुंदर फूल मेरी बगिया में,
मगर दिल का वो कोना अब भी खाली है,
माँ बनने का प्रथम एहसास दिया था जिसने,
उसके न होने की पीडा अब भी बाकी है.....
उसे स्पर्श नही किया,
मगर वो अंश था मेरा ,
मैं समेट पाती उस एहसास को,
उससे पहले ही वो चल दिया ...
नियति के कठोर खेल ने,
एक माँ का आँचल हमेशा के लिए ,
छलनी कर दिया .....
man aur antarman
ReplyDeletedono
gadgad ho gaye
उसे स्पर्श नही किया,
मगर वो अंश था मेरा ,
मैं समेट पाती उस एहसास को,
उससे पहले ही वो चल दिया ...
waah.......waah
badhaai !