पुष्पों से श्रृंगार किया था ,
दूध से नहलाया था,
अपनी आस्था के दीपक से प्रतिदिन,
तेरा शिवालय सजाया था....
बाल मन की अंधभक्ति से,
युवा मन की आराधना तक,
सहज पलों के खुश लम्हों से ,
सिसकी भरी रातों तक,
कण कण में ढूँढा,कण कण पे शीश झुकाया..
मगर जीवन की आपा थापी ने मुझे झुलसा दिया,
तेरी आस्था के पुष्पों को कुछ ऐसा कुम्हला दिया ,
अब अश्कों से नहलाया है तुझको ,
व्यथाओं से श्रृंगार किया है ,
सिसकीयों का नाद भर,
दर्द का दीप प्रज्वलित किया ...
ग्लानी नहीं है मुझे ,
नही मैने कोई अपराध किया ,
जो भी मिला है तुझसे,
सर्वस्व तुझ पे अर्पण कर दिया ।
blogging kee anokhee duniya mein swaagat hai...shabdon kaa chayan sundar hai...likhtee rahein...
ReplyDeleteVery well versed.....
ReplyDeleteSmiles :)
Prashant
अच्छी कोशिश है निधि जी। एक बात कहना चाहता हूँ बुरा मत मानियेगा-
ReplyDeleteशब्दों का संयोग अगर हो और समर्पण भाव।
इस कविता में संपादन का दिखता मुझे अभाव।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुंदर रचना......
ReplyDeleteमैं कोई साहित्यिक विद्वान नहीं हूँ !
ReplyDeleteनिधि जी कविता के भाव अच्छे हैं !
शब्दों का उपयोग भी आप खूब जानती हैं !
इसके बावजूद भी कविता में संशोधन की पूर्ण गुंजाईश है !
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगी !
सच्ची शुभकामनाओं के साथ !
आज की आवाज
सुझाव :
ReplyDeleteकृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें,
इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !
स्वागत इस दुनिया में भी
ReplyDeleteमेरे ब्लॉगस
http//:gazalkbahane.blogspot.com/या
http//:katha-kavita.blogspot.com पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
bhav anupam!
ReplyDeleteshabd uttam!
WISH YOU ALL THE VERY VERY BEST
शब्द कब कविता का रूप ले लें कुछ कहा नही जा सकता।और मन की व्यथा कब शब्द बन उतर जाए ये कहना भी मुश्किल है। आपका प्रयास बहुत अछा लगा....शुभकामनाएं...
ReplyDeleteभाव ज्यादा..ज़मीन कम
ReplyDeleteसुस्वागतम्....
जो भी मिजो भी मिला है तुझसे, सर्वस्व तुझ पे अर्पण कर दिया ।ला है तुझसे, सर्वस्व तुझ पे अर्पण कर दिया ।
ReplyDeleteबहुत खुब।
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
aapko comments kee koi kami nahi rahegi balike. narayan narayan
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव हैं।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteसर्वस्व तुझ पे अर्पण किया। फिर समस्या क्या है? यह आपने स्पष्ट नहीं किया। कविता की अंतिम पंक्ति तक पढ़ी पर समझ में नहीं आया। आप ईश से क्या कहना चाहती हैं कुछ तो स्पष्ट करना चाहिए था। फिर भी कविता अच्छी है।
ReplyDelete.. श्याम
http://shyamgkp.blogspot.com
http://bhoolibisari.blogspot.com
आज आपका ब्लॉग देखा.... अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नई ऊंचाइयां मिलें और वे जन-सरोकारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन सकें.
ReplyDeleteकभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आयें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
बहुत अच्छा लिखा है आपने । आपका शब्द संसार भाव, विचार और अभिव्यिक्ति के स्तर पर काफी प्रभावित करता है ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Achha hua ki,derse hee sahi, aapke rachna sansaar me aa gayi..warna sundartase mehroom reh gayi hoti..anek shubhkamnayen!
ReplyDeletesneh sahit
shama
nidhi ji apaki kavita ke bhaav bahut achhe hain.blog par aapaka swagat hai.
ReplyDeleteआज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नये अर्थ, नयी ऊंचाइयां एयर नयी ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का सार्थक माध्यम बन सकें.
ReplyDeleteकभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
mobile : 09425800818