स्लेट का टुकड़ा
उमड़ा एक बेबस सा एहसास
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती।
और मैं नन्हा सा बच्चा बन,
जिंदगी पर मिटा मिटा कर लिखना सीखती।
जो मन को लगता हो भला सा,
चित्र वही हर बार खींचती।
यदि लिखती वक़्त की लकीरें कुछ अनचाहा
मैं गीला सा मन ले उसे मिटो लेती
होती अगर ये लिखावट गहरी
तो
मैं आँसू से उसे धो लेती।
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती
जिस पर लिखे कुछ अक्षर मैं मिटा सकती
या फिर जो कभी लौट नहीं सकते
उन पलों को
एक बार फिर बना सकती
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती।