बहुत दिन से एक कशमकश सी है,
कभी शब्द नहीं मिलते,
कभी भावनाएँ ने खो दी जमीन है,
और कभी जब दोनों में बैठा ताल मेल,
तो कोई कविता नहीं पनपी है...
कुछ एहसास जो अनकहे से होठों में दबे हैं,
और कुछ निराकार ह्रदय में बहे,
कुछ एहसास जो सोच की सीमा से परे हैं,
और कुछ जो मन के बांधे बंधन में बंध गए,
इन सभी अधूरे एहसासों को,
शब्दों की दुनिया नहीं मिली है....
परत दर परत समेटती जा रही हूँ,
यह आधे अधूरे से कुछ एहसास,
सोचती हूँ,
कहाँ सूखी मिट्टी से मूर्त कोई बनी है,
चाहा भी कुछ बूँद पलकों से ले उधार,
इन एहसासों को नम कर एक आकार रच दूं,
मगर पलकों में अब नमी भी नहीं मिली है.....
Some spoken stories and some tales untold, times I stood tall and times I got sold, carving feelings in to words, some new and some old.....
About me
- nidhi
- Singapore
- Conflict between the two, the true me and the image I pursue, the smiles I have and the sorrows I hide are part of me like coin with flipping sides.....
Thursday, December 16, 2010
Friday, May 7, 2010
काश जिंदगी एक स्लेट का तुकडा होती..
स्लेट का टुकड़ा
उमड़ा एक बेबस सा एहसास
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती।
और मैं नन्हा सा बच्चा बन,
जिंदगी पर मिटा मिटा कर लिखना सीखती।
जो मन को लगता हो भला सा,
चित्र वही हर बार खींचती।
यदि लिखती वक़्त की लकीरें कुछ अनचाहा
मैं गीला सा मन ले उसे मिटो लेती
होती अगर ये लिखावट गहरी
तो
मैं आँसू से उसे धो लेती।
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती
जिस पर लिखे कुछ अक्षर मैं मिटा सकती
या फिर जो कभी लौट नहीं सकते
उन पलों को
एक बार फिर बना सकती
काश जिंदगी एक स्लेट का टुकड़ा होती।
मेरा मैं ही खटक गया..
कोई गुजरा हुआ लम्हा,
गुजरने से पहले जिंदगी से अटक गया,
दुःख का एक कतरा,
जो सदियों से आँखों में कैद था,
वो आंसों बन आखों से भटक गया,
गैरों को भी जो अपनों सा अपनाती थी,
उसी जिंदगी को आज मेरा मैं ही खटक गया.
गुजरने से पहले जिंदगी से अटक गया,
दुःख का एक कतरा,
जो सदियों से आँखों में कैद था,
वो आंसों बन आखों से भटक गया,
गैरों को भी जो अपनों सा अपनाती थी,
उसी जिंदगी को आज मेरा मैं ही खटक गया.
Thursday, April 29, 2010
जिंदगी क्या क्या लायी
खर्च कर सुख की पोटली,
जिंदगी दुखों का सामान,
घर ले आई,
जिसकी एक चुभन से,
बिखर जाता है मन पारे सा ,
जिंदगी वो दुःख का मेहमान ,
घर ले आई,
थका थका था तन,
अब चुका सा रहेगा मन,
जिंदगी नया ये फरमान,
घर ले आई ,
अपने ही दुखों से ,
पूरा नहीं था मन आँगन,
दूसरों के दर्द भी अब यह,
उधार ले आई,
और फिर कोई भाप न ले ,
रोई हुई आँखों के किनारे,
मेरे रिसते गम छुपाने के लिए,
यह स्याह काजल का ,
पूरा बाज़ार घर ले आई,
जब लगा असहनीय पीड़ा का चक्र तोड़,
रोक दूं सांसों की आती जाती चुभन,
तभी जिंदगी,
जीने के नए से बहाने ,
दो चार घर ले आई.
जिंदगी दुखों का सामान,
घर ले आई,
जिसकी एक चुभन से,
बिखर जाता है मन पारे सा ,
जिंदगी वो दुःख का मेहमान ,
घर ले आई,
थका थका था तन,
अब चुका सा रहेगा मन,
जिंदगी नया ये फरमान,
घर ले आई ,
अपने ही दुखों से ,
पूरा नहीं था मन आँगन,
दूसरों के दर्द भी अब यह,
उधार ले आई,
और फिर कोई भाप न ले ,
रोई हुई आँखों के किनारे,
मेरे रिसते गम छुपाने के लिए,
यह स्याह काजल का ,
पूरा बाज़ार घर ले आई,
जब लगा असहनीय पीड़ा का चक्र तोड़,
रोक दूं सांसों की आती जाती चुभन,
तभी जिंदगी,
जीने के नए से बहाने ,
दो चार घर ले आई.
Monday, April 26, 2010
यह कुछ एहसास....
यह कुछ एहसास
यह कुछ एहसास
हों जैसे कोई
दीवार पे लटकी हुई तस्वीर।
सिर्फ तेज हवा के झोंके से
थरथराते हों जैसे
यह कुछ एहसास।
डगमगाते हुए,
जिंदगी की कील से लटके
मन की दीवार पर
अनगिनत निशान छोड़ जाते
यह कुछ एहसास।
जिन एहसासों का अस्तित्व
सिर्फ तेज़ हवा तक सीमित हैं ,
दिल की दीवार पर सुशोभित,
यह कुछ एहसास ..
मेरा एहम हैं,
या मेरी बदली सोच
मन की बाँधी गाँठ हैं
या कुछ गहरी पहुँची चोट
मगर हैं यह बस कुछ एहसास।
संवेदनाओं के भूकंप से
जब कभी हिलती हैं
सोच की दीवारें
वहीं कील पर लटके
कुछ नए निशान छोड़ जातेहैं
यह कुछ एहसास।
Wednesday, March 17, 2010
Tuesday, March 16, 2010
सहमा सा मन था,
रुकी रुकी सी सांसें थीं,
मिली जब तुमसे पहली बार,
उलझी सी मन की बातें थीं,
मन के भीतर का बच्चा डरता था,
किसी का न होगा हठ करता था,
मिले तुम और दुनिया ही बदल गयी,
प्रवाह से बहती नदी को,
मानो सागर की दिशा मिल गयी,
अनजान थे एक दुसरे से हम,
फिर जीवनसाथी बने,
साथ कुछ इस तरह गहरा हुआ,
मैं-तू से हम बनने लगे,
विशाल धरा सी तेरी प्रीत,
मेरा हर दर्द समेट लेती है,
तेरे समर्पण की ज्योति,
मेरी जिंदगी को दिशा देती है,
अचंभित हूँ कैसे मेरा व्याकुल मन,
तेरी गोद में बच्चा बन सो जाता है,
मेरा नहीं हुआ जो वो पल में तेरा हो जाता है.....
रुकी रुकी सी सांसें थीं,
मिली जब तुमसे पहली बार,
उलझी सी मन की बातें थीं,
मन के भीतर का बच्चा डरता था,
किसी का न होगा हठ करता था,
मिले तुम और दुनिया ही बदल गयी,
प्रवाह से बहती नदी को,
मानो सागर की दिशा मिल गयी,
अनजान थे एक दुसरे से हम,
फिर जीवनसाथी बने,
साथ कुछ इस तरह गहरा हुआ,
मैं-तू से हम बनने लगे,
विशाल धरा सी तेरी प्रीत,
मेरा हर दर्द समेट लेती है,
तेरे समर्पण की ज्योति,
मेरी जिंदगी को दिशा देती है,
अचंभित हूँ कैसे मेरा व्याकुल मन,
तेरी गोद में बच्चा बन सो जाता है,
मेरा नहीं हुआ जो वो पल में तेरा हो जाता है.....
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